
भाजपा की चौधरी चरण सिंह के वंशजों को सियासत से समाप्त करने की पुरानी हसरत रही है उसी के मद्देनजर भाजपा ने जयंत चौधरी को सियासी चक्रव्यूह में जकड़ लिया है। और उसी के तहत उनसे यूपी सीएम योगी के खिलाफ या तमिलनाडु में स्टालिन के खिलाफ बयान दिलवाये जा रहे हैं।
यें वही जयंत हैं जिनका भाजपा का नाम लेते ही पारा चढ़ जाया करता था। अगर मैं 2014 या 2017 में भाजपा के ऑफर की बात करूं तो छोटे चौधरी यानि अजित सिंह यह ऑफर ठुकराने के मूड में नहीं थे लेकिन उस समय जयंत ने भाजपा के उस ऑफर को ठुकराते हुए कहा था कि मरना पसंद है लेकिन भाजपा में जाना गवारा नहीं है। मैं भाजपा में जाने से अच्छा राजनीती छोड़ना पसंद करूंगा। चवन्नी थोड़ी हूं जो पलट जाऊंगा, यह जुमला तो सबको याद ही होगा। लेकिन हैरानी की बात यह है कि एकाएक जयंत चौधरी को क्यों बीजेपी में जाना पड़ा? क्या इसके पीछे कोई दबाव है या कोई मजबूरी है? अगर कुछ ऐसा है भी तो जयंत चौधरी को अपने समाज के सामने इस बात को रखना चाहिए ताकि समाज उनके साथ उठ खड़ा हो होकर विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब दे सके।
वहीं दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाजपा के स्थानीय नेता और अन्य सियासी दलों के नेता भी जयंत चौधरी की सियासी जमीन को हड़पने और उसका राजनीतिक कैरियर खत्म करने के लिए तमाम हथकंडे अपना रहे हैं। माना यह जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत किसानों की राजधानी कहे जाने वाले सिसौली में जाट आरक्षण को लेकर एक महा पंचायत हो रही है। उस पंचायत में यह निर्णय लिया जाएगा कि भाजपा की मोदी सरकार को जाटों को आरक्षण के मामले पर घेरने का काम किया जाए, यह बात जग जाहिर है कि भाजपा जाट आरक्षण को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी और अंत में यह बॉल जयंत के पाले में डालकर यह दबाव बनाने की कोशिश की जाएगी कि जयंत पीएम मोदी और अमित शाह से जाट समाज के प्रतिनिधियों, खाप पंचायत के चौधरियों और समाज के नेताओं की मुलाकात करवा कर जाट आरक्षण दिलवाने का काम करें। क्योंकि संजीव बालियान से लेकर दूसरे तमाम नेता यह कहकर सब बच निकलेंगे कि हम सरकार में किसी पद पर नहीं हैं। जबकि जयंत चौधरी केंद्रीय मंत्री हैं। ज़ाहिर है कि भाजपा में किसी की हैसियत नहीं है कि वह मोदी शाह के सामने इस मुद्दे को उठा सके।
हालांकि यह बात भी जग जाहिर है कि भाजपा की मोदी सरकार किसी भी कीमत पर जाट आरक्षण पर कोई विचार नहीं करने जा रही है लेकिन जयंत को घेरने के लिए उनके विरोधियों के लिए यह है स्वर्णिम अवसर है। अंत में यह बॉल जयंत चौधरी के पाले में डालकर उनको बली का बकरा बनाने की रणनीति दिखाई दे रही है। अब इस रणनीति का मुकाबला जयंत कर पाते हैं? या इसमें फंसकर वह शहीद हो जाते हैं यह तो समय ही बताएगा।