बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर: भारत में बौद्ध धम्म के पुनर्स्थापक, धर्मानुयायी और धर्मनिष्ठ
डॉ. प्रमोद कुमार

बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय इतिहास की एक विलक्षण और प्रेरणादायक विभूति हैं। उन्होंने न केवल दलितों और शोषितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी, बल्कि एक समतामूलक, न्यायपूर्ण और विवेकशील समाज की स्थापना के लिए आजीवन संघर्ष किया। भारत में बौद्ध धर्म की पुनर्स्थापना का श्रेय उन्हीं को जाता है। वे केवल बौद्ध धर्म के अनुयायी ही नहीं बने, बल्कि एक समर्पित धर्मनिष्ठ, महान विचारक, और आधुनिक युग में बौद्ध धम्म के अग्रदूत के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
1. बाबा साहेब का धार्मिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन:
डॉ. आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक महार परिवार में हुआ था, जो हिंदू जाति व्यवस्था के अनुसार ‘अछूत’ माने जाते थे। बचपन से ही उन्होंने सामाजिक भेदभाव, अपमान और बहिष्कार का सामना किया। धार्मिक रीति-रिवाजों में उनकी भागीदारी को प्रतिबंधित किया गया, और उन्हें मंदिरों में प्रवेश तक की अनुमति नहीं थी। इन अनुभवों ने उनके मन में गहरे आघात और प्रश्न खड़े किए कि एक धर्म, जो ईश्वर की समान संतानों के साथ भेद करता है, क्या वास्तव में धर्म कहा जा सकता है?
2. बौद्ध धर्म की ओर झुकाव:
डॉ. आंबेडकर ने विश्व की अनेक धार्मिक परंपराओं का तुलनात्मक अध्ययन किया—हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, और बौद्ध धर्म। लेकिन उनके अंतर्मन को सबसे अधिक आकर्षित किया बुद्ध का धम्म, जो तर्क, करुणा, अहिंसा, समता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित था। उन्होंने पाया कि गौतम बुद्ध का धर्म न केवल आत्मिक मुक्ति का मार्ग प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक न्याय, समरसता और विवेक की भी शिक्षा देता है।
3. बौद्ध धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
बौद्ध धर्म की स्थापना 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) द्वारा की गई थी। यह धर्म मूलतः ब्राह्मणवादी कर्मकांड, जातिवाद, और ईश्वर पर आधारित भक्ति के विपरीत ज्ञान, करुणा और प्रज्ञा पर आधारित था। मौर्य सम्राट अशोक के काल में यह धर्म भारत सहित एशिया के कई देशों में फैला। लेकिन कालांतर में ब्राह्मणवाद के प्रभाव, सामाजिक राजनीतिक परिवर्तनों और आंतरिक क्षरण के कारण बौद्ध धर्म भारत से लुप्तप्राय हो गया। इस धर्म को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता थी, जिसे डॉ. आंबेडकर ने आत्मसात किया।
4. बौद्ध धर्म के प्रति समर्पण और अध्ययन:
डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को केवल एक आध्यात्मिक पथ नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का माध्यम माना। उन्होंने ‘द बुद्ध एंड हिज धम्म’ नामक ग्रंथ की रचना की, जो बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों पर आधारित एक मौलिक ग्रंथ है। उन्होंने पालि ग्रंथों, थेरवाद और महायान परंपराओं का गहन अध्ययन किया और एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें बौद्ध धर्म को तर्कसंगत, वैज्ञानिक और प्रगतिशील रूप में देखा गया।
5. धर्म परिवर्तन की घोषणा और दीक्षा समारोह:
14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बाबा साहेब ने ऐतिहासिक ‘दीक्षा समारोह’ में अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इस अवसर पर उन्होंने ‘22 प्रतिज्ञाएं’ दिलवाकर यह सुनिश्चित किया कि उनके अनुयायी केवल नाम मात्र के बौद्ध नहीं, बल्कि एक विवेकशील और धर्मनिष्ठ जीवन जीने वाले होंगे।
22 प्रतिज्ञाओं की भूमिका:
इन प्रतिज्ञाओं में जातिवाद, ब्राह्मणवाद, देवी-देवताओं की पूजा, पुनर्जन्म, और कर्मकांड का पूर्णतः त्याग करने का आह्वान किया गया। यह न केवल धार्मिक रूपांतरण था, बल्कि एक सामाजिक-क्रांतिकारी घोषणा थी, जिसमें उन्होंने ब्राह्मणवादी ढांचे को चुनौती दी।
6. धम्म की पुनर्स्थापना में बाबा साहेब का योगदान:
डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि समस्त उत्पीड़ित मानवता के लिए पुनः जीवित किया। उनका धम्म किसी कर्मकांड या पूजा-पद्धति का हिस्सा नहीं था, बल्कि वह एक जीवन शैली थी—समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय की जीवनदृष्टि।
मुख्य योगदान:
धम्म साहित्य का पुनर्निर्माण: ‘बुद्ध और उनका धम्म’ एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो नए भारत के लिए बौद्ध धर्म की व्याख्या करता है।
बौद्धिक नेतृत्व: उन्होंने हजारों अनुसूचित जातियों को नया जीवनदर्शन प्रदान किया।
धम्म दीक्षा आंदोलन: यह केवल धार्मिक बदलाव नहीं था, यह सामाजिक पुनर्जन्म था।
7. बाबा साहेब एक धर्मनिष्ठ बौद्ध:
डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को केवल सामाजिक उपकरण के रूप में नहीं देखा, बल्कि स्वयं भी पूर्ण निष्ठा और आस्था से उसका पालन किया। वे नियमित ध्यान और धम्मचिंतन करते थे, बौद्ध मूल्यों—मैत्री, करुणा, समता, और प्रज्ञा—को अपने जीवन और कार्यों में शामिल करते थे। उन्होंने लिखा: “बुद्ध का धर्म केवल मोक्ष का साधन नहीं है; यह मनुष्य के जीवन को पूर्ण रूप से बदलने का माध्यम है।”
8. धम्म के सिद्धांत और डॉ. आंबेडकर की व्याख्या
डॉ. आंबेडकर ने बुद्ध के चार आर्य सत्यों, अष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, और मध्य मार्ग जैसे सिद्धांतों को आधुनिक भाषा और दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया।
चार आर्य सत्य:
1. दुःख: जीवन में दुःख है।
2. दुःख समुदय: दुःख का कारण है—तृष्णा।
3. दुःख निरोध: इस दुःख का अंत संभव है।
4. मार्ग: दुःख से मुक्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग है।
डॉ. आंबेडकर की दृष्टि:
उन्होंने कहा कि ये चार सत्य केवल आत्मा के मुक्ति के लिए नहीं हैं, बल्कि सामाजिक दुःख के निवारण का मार्ग भी प्रस्तुत करते हैं।
9. धम्म और भारतीय संविधान
डॉ. आंबेडकर के संविधान-निर्माण में बौद्ध धम्म के मूल्य गहराई से प्रतिबिंबित होते हैं। समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय—ये सभी बौद्ध धर्म के मूल स्तंभ हैं। उन्होंने बौद्ध धम्म के सामाजिक और नैतिक सिद्धांतों को भारत के संविधान की आत्मा में अंतर्निहित किया।
10. धम्म के वैश्विक पुनरुद्धार में योगदान
बाबा साहेब के योगदान से बौद्ध धर्म न केवल भारत में फिर से स्थापित हुआ, बल्कि विश्व भर में फैला। आज थाईलैंड, श्रीलंका, जापान, म्यांमार, और अमेरिका में आंबेडकरी बौद्ध आंदोलन की गूंज सुनाई देती है। बौद्ध धम्म को आधुनिक युग में पुनर्जीवित करने वाले वे अकेले विश्वनेता हैं।
11. बाबा साहेब की मृत्यु और धम्म की विरासत
6 दिसंबर 1956 को डॉ. आंबेडकर का निधन हुआ। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में ‘बुद्ध और उनका धम्म’ पूरा किया। यह ग्रंथ उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ, जो आज भी नवयान बौद्धों के लिए प्रमुख धर्मग्रंथ है। उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी विचारधारा पर आधारित ‘नवयान बौद्ध धर्म’ एक मजबूत आंदोलन के रूप में विकसित हुआ। उनके अनुयायी आज भी ‘जय भीम’ और ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ के उद्घोष के साथ उनके धम्म को आगे बढ़ा रहे हैं।
डॉ. भीमराव आंबेडकर केवल एक राजनीतिक या सामाजिक क्रांतिकारी नहीं थे। वे एक गहरे धार्मिक, विचारशील, और समर्पित बौद्ध थे। उन्होंने बौद्ध धर्म को भारतीय समाज में नये रूप में पुनर्जीवित किया और उसे एक आधुनिक, वैज्ञानिक, और सामाजिक न्याय आधारित धर्म के रूप में प्रस्तुत किया। भारत में बौद्ध धर्म की पुनर्स्थापना, उसके अनुयायियों का संगठन और उसके मूल्यों का प्रचार-प्रसार—इन सबके पीछे जो अद्वितीय व्यक्तित्व रहा, वह था डॉ. भीमराव आंबेडकर। वे केवल बौद्ध धर्म में दीक्षित नहीं हुए, उन्होंने एक समर्पित धर्मनिष्ठ की तरह उसका पालन किया और उसके सिद्धांतों को भारत की आत्मा में प्रतिष्ठित किया।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा