तथागत महात्मा गौतम बुद्ध: सामाजिक क्रांति के जनक व अग्रदूत एवं मानवतावाद के प्रवीण स्रोत
डॉ प्रमोद कुमार
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महात्मा गौतम बुद्ध न केवल एक धार्मिक गुरु थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक और मानवतावादी भी थे। उनका जीवन और शिक्षाएँ सामाजिक क्रांति का आधार बनीं, जिसने भारतीय समाज की जड़ताओं को तोड़कर एक नई दिशा दी। वे करुणा, अहिंसा और समानता के प्रतीक थे। उनकी शिक्षाओं ने जाति व्यवस्था, अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध एक शांतिपूर्ण लेकिन क्रांतिकारी आंदोलन चलाया। उनका दर्शन मानवतावादी दृष्टिकोण से परिपूर्ण था और आज भी यह दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करता है। बुद्ध की शिक्षाएँ केवल धार्मिक नहीं थीं, बल्कि वे सामाजिक न्याय और समानता की नींव थीं। उन्होंने तर्क, विवेक और अनुभव पर आधारित एक व्यावहारिक दृष्टिकोण दिया, जिसमें नैतिकता, ध्यान और प्रज्ञा (ज्ञान) को प्रमुखता दी गई।
इस लेख में, हम गौतम बुद्ध को सामाजिक क्रांति के जनक और अग्रदूत के रूप में विश्लेषित करेंगे तथा यह समझने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार उन्होंने मानवतावाद को अपने जीवन और उपदेशों के माध्यम से मूर्त रूप दिया। महात्मा गौतम बुद्ध एक महान सामाजिक क्रांतिकारी और मानवतावादी थे। उनका जीवन और शिक्षाएँ सामाजिक न्याय और समानता की नींव थीं। उन्होंने तत्कालीन समाज की कुरीतियों, विशेष रूप से जाति व्यवस्था, ब्राह्मणवाद और हिंसा के विरुद्ध आवाज उठाई।
1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं जीवन परिचय
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान में नेपाल) में हुआ था। उनका असली नाम सिद्धार्थ गौतम था और वे शाक्य वंश के एक राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। सिद्धार्थ का पालन-पोषण अत्यंत वैभव और विलासिता में हुआ, लेकिन उन्होंने संसार की पीड़ा और दुख को देखकर संन्यास का मार्ग अपनाने का निश्चय किया।
उन्होंने 29 वर्ष की आयु में गृहत्याग किया और सत्य की खोज में निकल पड़े। छह वर्षों की कठिन तपस्या के बाद, उन्होंने बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे गहन ध्यान लगाया और 35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वे गौतम बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुए और अपने उपदेशों से समाज में व्यापक परिवर्तन लाने का कार्य किया।
2. सामाजिक क्रांति के जनक: गौतम बुद्ध का योगदान
गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ केवल धार्मिक नहीं थीं, बल्कि वे सामाजिक न्याय और समानता की नींव भी थीं। उन्होंने तत्कालीन समाज की कुरीतियों, विशेष रूप से जाति व्यवस्था, ब्राह्मणवाद और हिंसा के विरुद्ध आवाज उठाई।
2.1 जाति व्यवस्था का विरोध
उस समय भारतीय समाज कठोर जाति व्यवस्था से ग्रस्त था। ब्राह्मणों को सर्वोच्च माना जाता था, जबकि शूद्रों को निम्नतम स्तर पर रखा गया था। बुद्ध ने इस व्यवस्था का विरोध किया और कहा कि व्यक्ति की श्रेष्ठता जन्म से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से निर्धारित होती है।
उन्होंने अपने संघ (बौद्ध भिक्षु समुदाय) में सभी जातियों के लोगों को प्रवेश दिया और सामाजिक समानता का आदर्श स्थापित किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने सुप्रसिद्ध भिक्षु उपालि को अपने संघ में स्थान दिया, जो कि एक नाई जाति से थे।
2.2 स्त्रियों के प्रति उदार दृष्टिकोण
बुद्ध ने स्त्रियों को भी आध्यात्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता देने का प्रयास किया। उन्होंने भिक्षुणी संघ की स्थापना की और स्त्रियों को भी धर्म का प्रचार करने की अनुमति दी। यह उस समय एक क्रांतिकारी कदम था, क्योंकि स्त्रियों को धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से निम्न समझा जाता था।
2.3 अहिंसा और करुणा का प्रचार
बुद्ध ने अहिंसा को केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि मानसिक और वाचिक हिंसा से भी दूर रहने की प्रेरणा दी। उनका मानना था कि दया, प्रेम और करुणा के द्वारा ही समाज में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सकता है।
2.4 धर्म की नई परिभाषा
बुद्ध का धर्म किसी भी अंधविश्वास, कर्मकांड या यज्ञ-बलि पर आधारित नहीं था। उन्होंने तर्क, विवेक और अनुभव पर आधारित एक व्यावहारिक दृष्टिकोण दिया, जिसमें नैतिकता, ध्यान और प्रज्ञा (ज्ञान) को प्रमुखता दी गई।
3. अग्रदूत के रूप में बुद्ध
गौतम बुद्ध ने केवल एक क्रांति की शुरुआत नहीं की, बल्कि वे इस आंदोलन के अग्रदूत भी बने। उन्होंने अपने शिष्यों के माध्यम से बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार किया और इसे समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाया।
3.1 बौद्ध संघ की स्थापना
बुद्ध ने अपने अनुयायियों का एक संघ बनाया, जहाँ सभी को समान अधिकार प्राप्त थे। इस संघ ने समाज में समरसता और समानता की भावना को बढ़ावा दिया।
3.2 लोकभाषा में उपदेश देना
बुद्ध ने संस्कृत के बजाय पालि भाषा में उपदेश दिए, ताकि आम लोग भी उनकी शिक्षाओं को समझ सकें। यह एक बड़ा क्रांतिकारी कदम था, क्योंकि धर्म को ब्राह्मणों के एकाधिकार से मुक्त कर दिया गया।
3.3 राजाओं और जनसामान्य के बीच लोकप्रियता
बुद्ध के उपदेशों ने न केवल सामान्य जनता को बल्कि कई राजाओं को भी प्रभावित किया। मगध के राजा बिंबसार, अजातशत्रु और कोशल के राजा प्रशेनजित उनके प्रमुख अनुयायियों में से थे।
4. मानवतावाद के प्रवीण स्रोत के रूप में गौतम बुद्ध
बुद्ध का पूरा दर्शन मानव कल्याण पर आधारित था। उन्होंने व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और आत्मज्ञान को महत्व दिया।
4.1 दुख और उसके निवारण का सिद्धांत
बुद्ध ने ‘चार आर्य सत्य’ और ‘अष्टांगिक मार्ग’ की अवधारणा दी, जो मानवीय पीड़ा को समाप्त करने का एक व्यावहारिक उपाय प्रस्तुत करते हैं।
4.2 सामाजिक सद्भावना और विश्वशांति
बुद्ध का संदेश केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह चीन, जापान, थाईलैंड, श्रीलंका, तिब्बत और अन्य देशों में भी फैल गया। उनका अहिंसा और करुणा का संदेश विश्वशांति के लिए आज भी प्रासंगिक है।
4.3 भिक्षुओं की समाज में भूमिका
बुद्ध ने अपने शिष्यों को केवल आत्मज्ञान तक सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज सेवा का भी मार्ग दिखाया। बौद्ध भिक्षु लोगों को शिक्षित करते थे, चिकित्सा सेवा प्रदान करते थे और समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देते थे।
महात्मा गौतम बुद्ध एक महान सामाजिक क्रांतिकारी और मानवतावादी थे। उन्होंने समाज की जड़ताओं को चुनौती दी और एक नए युग की शुरुआत की। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज सुधारकों, दार्शनिकों और विचारकों को प्रेरणा देती हैं। उनकी विचारधारा ने भारत और विश्व में अनेकों बदलाव लाए और यह सिद्ध किया कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समाज में समानता, प्रेम और करुणा को स्थापित करने का भी माध्यम होता है। बुद्ध ने सामाजिक क्रांति की शुरुआत की और एक नए युग की शुरुआत की। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज सुधारकों, दार्शनिकों और विचारकों को प्रेरणा देती हैं। उनकी विचारधारा ने भारत और विश्व में अनेकों बदलाव लाए और यह सिद्ध किया कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समाज में समानता, प्रेम और करुणा को स्थापित करने का भी माध्यम होता है। बुद्ध के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं जब मानवता को शांति, सहिष्णुता और करुणा की सबसे अधिक आवश्यकता है। उनके द्वारा स्थापित सामाजिक क्रांति और मानवतावाद की यह धारा अनवरत रूप से मानव सभ्यता को एक नई दिशा देने में सहायक होगी।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा