
बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद की जिस प्रकार से पार्टी में उसी सम्मान और पद प्रतिष्ठा के साथ वापसी कराई है, उससे राजनीतिक हलचल तेज के. पी. मलिक हो गई है। ज्यादातर बसपाई इससे खुश हैं, तो विपक्षियों, खासकर भाजपा के लिए ये कान खड़े कर देने वाली खबर है। तीखे और दलितों की बात करने वाले आकाश आनंद दलित युवाओं के लिए एक उम्मीद रहे हैं, जिनकी उम्मीद मायावती से कहीं न कहीं फीकी पड़ रही थी। हालांकि आकाश आनंद की वापसी से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि आखिर उनकी वापसी किस प्रकार से हुई और उनकी बुआ यानि मायावती का दिल कैसे पसीजा, जो कि अपने भतीजे आकाश आनंद को जितना प्यार करती हैं, उससे कहीं ज्यादा उनसे पिछले कुछ महीनों से बेहद नाराज चल रहीं थीं।
दरअसल, ये सब जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि आकाश आनंद की राजनीति में एंट्री कैसे हुई और बसपा में उनको किस प्रकार से जिम्मेदारियां दी गई और अचानक किस प्रकार से और किस वजह से उन्हें सभी पदों से हटाकर पार्टी से निकाल दिया गया और ये भी जानना जरूरी है कि उनके पिचा यानि मायावती के भाई आनंद कुमार से मायावती क्यों नाराज हुई थीं? दरअसल, साल 1995 में उत्तर प्रदेश में जन्मे आकाश आनंद मायावत्ती के छोटे भाई आनंद कुमार के बड़े बेटे हैं। आकाश की शुरुआती शिक्षा नोएडा में हुई, उसके बाद की पढ़ाई गुड़गांव में हुई। साल 2013 में उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ने भेज दिया गया, जहां से साल 2016 में उनकी पढ़ाई पूरी हुई और वो हिंदुस्तान
वापस आ गए और सबसे पहले बिजनेस में कदम रखा, लेकिन राजनीति में उनकी रुचि थी और फैसला भी कि वो राजनीति में ही अपना कैरियर बनाएंगे। उनकी राजनीतिक रुचि को देखते हुए मायावती ने उन्हें साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव हारने के बाद राजनीतिक मंच पर लेकर आई और उन्हें राजनीति के दांवपेंच सिखाते हुए साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें अपनी पार्टी में स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल कर लिया।
ये वो समय था जब सपा यानि समाजवादी पार्टी और बसपा यानि मायावती की बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन भी टूट चुका था। ऐसे में आकाश की राजनीतिक समझ देखते हुए उन्हें पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर घोषित किया गया और दो साल बाद यानि साल 2023 में मायावती ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया। लेकिन जैसे ही आकाश आनंद ने राजनीतिक तेवर तीखे किए और भाजपा के खिलाफ हमला बोलना शुरू किया, तो मायावती ने अपने भतीजे की पीठ थपथपाने की जगह उनके पेच कसने शुरू कर दिए, ये बात बसपा समर्थकों को बहुत बुरी भी लगी, लेकिन मायावती पर इसका कोई असर नहीं हुआ और अपने भतीजे से वो
इस कदर नाराज हुईं कि साल 2025 आते-आते उनसे दूरी बनाने लगीं और मार्च आते ही आकाश को न सिर्फ दोनों पदों से हटा दिया गया, बल्कि उन्हें पार्टी से भी बाहर कर दिया। ये कड़वाहट इतनी ज्यादा थी कि मायावती ने यह तक कह दिया कि आकाश आनंद अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ के कहने पर चल रहे हैं और अशोक सिद्धार्थ ने आकाश आनंद का राजनीतिक कैरियर बर्बाद किया है।
अशोक सिद्धार्थ को वो पार्टी से निकाल ही चुकी थी, जिनकी बेटी प्रज्ञा, जो कि पेशे से एक डॉक्टर है, आकाश आनंद की पत्नी हैं। आकाश को पार्टी से निकालने के बाद मायावती ने ये भी कहा था कि आकाश पर उनकी पत्नी का प्रभाव है, जो पार्टी हित में नहीं था। और साथ में ये भी कह दिया कि मेरे जीते जी मेरा कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। ऐसा कहा जाता है कि आकाश आनंद के बाद उनके पिता आनंद कुमार को पार्टी में नेशनल कोऑर्डिनेटर का पद आफर हुआ, लेकिन उन्होंने मना कर दिया, जिसके चलते मायावती उनसे भी नाराज हुई। ये सब होने के बाद मायावती के बहुत बड़ी संख्या में समर्थक नाराज भी हुए और पार्टी के भीतर बहुत से नेता इस चक्कर में रहने लगे कि मायावती उन्हें पार्टी में दूसरे नंबर की पोजिशन दे देंगी और इसकी कानाफूसी भी हुई। लेकिन कहते हैं ना कि खून के रिश्ते तो खून के ही होते हैं। और वही हुआ, तीन महीने के भीतर ही मायावती का दिल पसीजा और आकाश आनंद की बसपा में धमाकेदार वापसी हो गई। और इस बार न सिर्फ उन्हें दोनों पद वापस मिल गए हैं, बल्कि उनकी वापसी पूरे शोर-शराबे के साथ हुई है। क्योंकि पहले जब मायावती पार्टी मीटिंग करती थीं, तो मुख्य कुर्सी पर वो होती थी और पास में उनके भाई आनंद कुमार, भतीजे आकाश आनंद, पार्टी महासचिव
और मायावती के खास सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा और दो-चार खास लोग ही हुआ करते थे, लेकिन इस बार मायावती ने तकरीबन ज्यादातर नेताओं की मीटिंग बुलाकर आकाश आनंद की वापसी कराई। दरअसल, मेरे ख्याल से आकाश आनंद की वापसी में पांच फैक्टर मुख्य रहे। पहला फैक्टर तो ये रहा कि जब आकाश आनंद से दोनों पद लेकर उन्हें पार्टी से निकाला गया, तो उन्हें रामदास अठावले ने अपने साथ
आने का आफर किया था, लेकन आकाश ने उनके साथ जाने से साफ मना कर दिया। इसी प्रकार से दूसरी कई पार्टियों से भी आकाश को बुलावा आने की खबरें अंदरखाने आ रही थीं, लेकिन उन्होंने अपनी बुआ मायावती को धोखा देना उचित नहीं समझा और बुआ का गुस्सा शांत होने तक न सिर्फ खामोशी से बिना किसी उल्टी-सीधी बयानबाजी से बचे रहे, बल्कि अपनी बुआ का उतना ही आदर करते रहे, जितना वो पहले करते थे। इसमें दूसरा फैक्टर रहे आकाश आनंद के छोटे भाई ईशान आनंद, जिन्होंने न सिर्फ मायावती के उसूलों के खिलाफ जाकर गैर-दलित लड़की से शादी कर ली, बल्कि उन्होंने राजनीति में रुचि भी कभी नहीं रखी और साफ तौर पर जाहिर कर दिया कि वो बिजनेस करेंगे। तीसरा बड़ा फैक्टर आकाश की वापसी का ये रहा कि उनकी पत्नी प्रज्ञा
ने तब भी अपनी बुआ सास मायावती का विरोध नहीं किया, जब उन्होंने ये कह दिया कि वो अपने माता-पिता से भी नहीं मिलेंगी। लेकिन अपनी बुआ सास के इस फरमान के दो महीने बाद जब उन्होंने अपने मां-बाप से मिलने की इच्छा आकाश आनंद के सामने जाहिर की, तो आकाश आनंद ने कह दिया कि वो अपनी बुआ के हुक्म के आगे मजबूर हैं।