
श्री गणेशाय नमः
ओम् नमो नारायणाय
ओम् नमः शिवाय
दोहा-
परम ब्रह्म परमात्मा, लिंग रूप भगवान।
अपरिमेय ब्रह्माण्ड मय, सद्य: कृपा निधान।।
अवढरदानी रुद्र हे! आशुतोष महराज।।
कृपा करो प्रभु भक्त पर, सुंदर बने समाज।।
चौपाई छंद –
हे निराकार साकार प्रभो!
हे ब्रह्म तत्त्व विस्तार प्रभो!!
हे महादेव! हे शिवशंकर!
हे महा रूद्र! हे बट ईश्वर!।
हे प्राणनाथ हे परमेश्वर!
हे मंगलेश! प्रभु योगेश्वर!।
हे एक पाद! हे शशि शेखर!
हे एक नयन! हे डमरूधर!!
हे उमानाथ! हे कैलाशी!
हे गंगाधर हे अविनाशी!!
हे नीलकंठ अवढरदानी!
हे शिव शशांक प्रभु बर्फानी!!
हे कालखंड हे कामेश्वर!
हे कामरूप कलि कालेश्वर!!
हे क्षमाचार! हे क्रतु-ध्वंसी !
हे दक्ष यज्ञ के विध्वंसी !!
हे पिंगलाक्ष! हे प्रथमेश्वर !
हे पूर्णेश्वर! हे परमेश्वर!!
हे चंद्रमौलि! हे अभयंकर!
हे सोम सुदर्शन प्रलयंकर!
हे लोहिताश्व ! हे मृत्युंजय!
हे आशुतोष हे ज्योतिर्मय!!
हे आदिदेव प्रतिमान प्रभो!!
हे द्वादश लिंग महान प्रभो।
हे सोमनाथ हे सोमेश्वर।
हे विश्वनाथ! हे विश्वेश्वर !!
हे महाकाल दुख के नाशी!
केदारनाथ प्रभु अविनाशी!!
प्रभु बैद्यनाथ वृष असवारी।।
हे हरिहर नाथ कृपाचारी!!
ओंकारम् अमलेश्वर नामा।
नागेशम् अनुपम अभिरामा।।
श्री शैल मल्लिकार्जुन भारी।
प्रभु का दर्शन मंगलकारी।।
रामेश्वर महिमा अति पावन।
प्रभु राम विजय श्रुति मनभावन।।
हे तीन नेत्र! प्रभु सुखकारी।
श्री भीमाशंकर अघ हारी।।
ये द्वादश लिंग शिवा रूपा।
हैं प्रकृति पुरुष अनुपम भूपा।।
हर पूजक को देते घर-वर।
अति अनुपम दिव्य जगत सुंदर।।
विद्यार्थी विद्या को पाते।
संसारी सुख संतति भाते।।
जय जयकार करे जो स्वर से।
दान -पुण्य नित सेवा उर से।।
उसका भार सदा प्रभु हरते।
भंडारे मनवांछित भरते।।
जय महेश जय-जय जग पावन।
गौरी पति शंकर मनभावन।।
जयति रूद्र जय-जय अर्धेश्वर।
अरिदम अनघ अत्रि अचलेश्वर।।
जय अमोघ अर्हत अज्ञेया।
प्रभु की कृपा मिलहिं सब श्रेया।।
जय अकंप श्री रुद्र अकाली।
सेवक पूजक गृह खुशहाली।।
जय महेश आत्रेय अतंगा।
शीश जटा शशि शोभित गंगा।।
उमाकांत ऋतुध्वज ऋतुवासा।
भक्त जनों की पूरण आशा।।
जय अघोर अनिरुद्ध त्रिलोचन!
भक्त जनों के भव -भय मोचन।।
जय इकंग ईशान सुरेश्वर!
सद्य: कृपा करें भक्तों पर!!
करे भक्त जो जय जयकारे।
लिंग बटेश्वर अघ को क्षारे।।
शुद्ध -बुद्ध हो अंतर सबका।
नमः शिवाया जागृत मनका।।
पूरित चाह प्रेम सत्कामा!
मानस भाव रहे अभिरामा!!
मनोकामना पूर्ण मही की।
पीड़ा अंतर दूर सभी की।।
सबको शुभ संगति मिल जाए।
आत्मा की पहचान कराए।।
जपते जो शिव-शिवम विवेका।
कटे रोग दुख पाप अनेका।।
नित्य करें जो प्रभु की सेवा।
पा जाएँ मनवांछित मेवा।।
नहीं कभी हो अनघ घनेरा।
जीवन में हो सत्य सवेरा। ।
दोहा-
द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रभु, महिमा अमित अपार।
करता विनती रामजस, हो सबका उद्धार।।
श्री शिव शंकर के चरणों में समर्पित मौलिक कृति आज नाग पंचमी की शुभकामनाओं के साथ पुनः प्रेषित