भविष्य निर्माता शिक्षक: बदलते युग में शिक्षण, मार्गदर्शन और राष्ट्र निर्माण की नई परिभाषा”
डॉ प्रमोद कुमार

मानव सभ्यता के विकास में शिक्षा को आधारशिला माना गया है और इस शिक्षा की आत्मा शिक्षक होता है। शिक्षक को सदा से समाज का शिल्पकार और राष्ट्र का भविष्य निर्माता माना गया है। वह केवल ज्ञान देने वाला साधक नहीं, बल्कि संस्कार, मूल्य और जीवन दृष्टि का प्रदाता भी है। प्राचीन भारत में गुरु को ईश्वरतुल्य माना गया, क्योंकि वह शिष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और व्यक्तिगत स्वार्थ से सामाजिक व राष्ट्रीय चेतना की ओर ले जाने वाला होता है। शिक्षक केवल ज्ञान प्रदान करने वाला नहीं होता, बल्कि वह जीवन मूल्यों, संस्कारों और राष्ट्र के भविष्य का निर्माता भी होता है। बदलते वैश्विक परिदृश्य, तकनीकी प्रगति और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में शिक्षक की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। आज शिक्षक को केवल एक “पाठ पढ़ाने वाले” व्यक्ति की दृष्टि से नहीं देखा जाता, बल्कि एक मार्गदर्शक, विचारक, शोधकर्ता और राष्ट्र निर्माता के रूप में उसकी पहचान गढ़ी जा रही है। वर्तमान युग में शिक्षक का स्वरूप बहुआयामी हो चुका है—जहाँ वह शिक्षा को केवल पुस्तकों और परीक्षाओं तक सीमित नहीं रखता, बल्कि विद्यार्थियों में रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच, मानवीय मूल्य और सामाजिक जिम्मेदारी भी विकसित करता है। इस प्रकार, भविष्य निर्माता शिक्षक वह है, जो बदलते युग के साथ कदम मिलाकर शिक्षण, मार्गदर्शन और राष्ट्र निर्माण को नई परिभाषा देता है। बदलते युग में यह भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
आज का समय तेजी से बदलते तकनीकी विकास, वैश्वीकरण, प्रतिस्पर्धा और सांस्कृतिक संकट का है। इस दौर में शिक्षा केवल पुस्तकीय जानकारी तक सीमित नहीं रही, बल्कि जीवन कौशल, रचनात्मकता और मानवीय संवेदनाओं का संवाहक बन चुकी है। ऐसे परिप्रेक्ष्य में शिक्षक का स्वरूप भी व्यापक हो गया है। अब वह केवल पाठ्यक्रम पूरा करने वाला नहीं, बल्कि विद्यार्थियों का मार्गदर्शक, परामर्शदाता और प्रेरणास्रोत है। भविष्य निर्माता शिक्षक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह शिक्षा को समाज और राष्ट्र निर्माण से जोड़ता है। वह विद्यार्थियों में केवल रोजगार पाने की क्षमता ही नहीं जगाता, बल्कि उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाकर लोकतांत्रिक आदर्शों, समानता, सहिष्णुता और समरसता की भावना से भी जोड़ता है। वह बदलते युग की चुनौतियों का सामना करते हुए ज्ञान और मूल्य का ऐसा संगम प्रस्तुत करता है, जिससे विद्यार्थी व्यक्तिगत सफलता के साथ-साथ राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान दें। अतः स्पष्ट है कि बदलते समय में शिक्षक की भूमिका केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि वह मार्गदर्शन और राष्ट्र निर्माण की नई परिभाषा गढ़ने वाला व्यक्तित्व है। यही कारण है कि शिक्षक को वास्तविक अर्थों में भविष्य निर्माता कहा जाता है।
बदलते युग का परिप्रेक्ष्य और शिक्षक की प्रासंगिकता:
आज का युग तीव्र परिवर्तन का युग है। वैश्वीकरण, डिजिटल क्रांति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट और सोशल मीडिया ने समाज की सोच, जीवनशैली और शिक्षा की परिभाषा ही बदल दी है। ऐसे समय में शिक्षक की भूमिका और भी चुनौतीपूर्ण एवं बहुआयामी हो गई है।
1. ज्ञान का विस्तार और तकनीकी निर्भरता – अब ज्ञान पुस्तकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इंटरनेट और तकनीकी साधनों से विद्यार्थी कहीं भी, कभी भी सूचना प्राप्त कर सकते हैं। इस स्थिति में शिक्षक का कार्य मात्र सूचना देना नहीं, बल्कि विद्यार्थियों को सही ज्ञान, विवेकपूर्ण दृष्टि और नैतिक मूल्य देना है।
2. प्रतिस्पर्धी वैश्विक समाज – आज शिक्षा केवल रोजगार प्राप्त करने का साधन नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा का माध्यम बन चुकी है। ऐसे में शिक्षक को विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, रचनात्मकता और नेतृत्व क्षमता विकसित करनी होती है।
3. सांस्कृतिक और नैतिक संकट – भौतिकवादी जीवनशैली और पश्चिमी प्रभावों के कारण मानवीय मूल्यों का क्षरण हो रहा है। इस परिस्थिति में शिक्षक विद्यार्थियों में नैतिकता, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व की चेतना जगाने का कार्य करता है।
4. लोकतांत्रिक भारत और सामाजिक समरसता – भारत जैसे बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश में शिक्षक का कार्य केवल शिक्षण नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक आदर्शों को सुदृढ़ करना भी है।
शिक्षक का रूप-स्वरूप: बदलते संदर्भ में
आज शिक्षक का स्वरूप केवल “ज्ञानदाता” का नहीं, बल्कि “जीवन निर्माता” का हो गया है।
ज्ञानदाता से मार्गदर्शक तक – पहले शिक्षक केवल पाठ्यक्रम पर आधारित ज्ञान प्रदान करता था, परंतु अब वह विद्यार्थियों को जीवन और करियर का मार्गदर्शन देने वाला गाइड बन गया है।
अनुशासनकर्ता से प्रेरणास्रोत तक – शिक्षक अब केवल अनुशासन बनाए रखने वाला व्यक्ति नहीं, बल्कि अपनी सोच, व्यवहार और कार्यशैली से विद्यार्थियों को प्रेरित करने वाला आदर्श है।
कक्षा शिक्षक से समाज सुधारक तक – आधुनिक शिक्षक केवल कक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज में परिवर्तन लाने वाला और राष्ट्र निर्माण में योगदान करने वाला व्यक्तित्व बन गया है।
प्रौद्योगिकी मित्र – आज का शिक्षक ई-लर्निंग, स्मार्ट क्लास, डिजिटल प्लेटफॉर्म, वर्चुअल लैब और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके शिक्षा को आधुनिक और सहज बना रहा है।
शिक्षक का कार्यक्षेत्र:
शिक्षक का कार्यक्षेत्र आज अत्यंत विस्तृत हो गया है।
1. शैक्षणिक कार्यक्षेत्र – पाठ्यक्रम की पढ़ाई, शोध, मूल्यांकन, कौशल विकास और विद्यार्थियों की प्रगति का आकलन।
2. व्यक्तित्व निर्माण – विद्यार्थियों के चरित्र, नैतिक मूल्यों, नेतृत्व क्षमता और सामाजिक चेतना का विकास।
3. तकनीकी शिक्षा का प्रसार – डिजिटल टूल्स और स्मार्ट क्लास के माध्यम से शिक्षण को अधिक रोचक व प्रभावी बनाना।
4. सामाजिक कार्यक्षेत्र – समाज में समानता, भाईचारे, जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ चेतना फैलाना।
5. राष्ट्र निर्माण – लोकतांत्रिक मूल्यों, संविधानिक आदर्शों और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना।
6. वैश्विक कार्यक्षेत्र – विद्यार्थियों को विश्व नागरिक के रूप में तैयार करना, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी भूमिका निभा सकें।
शिक्षक का योगदान:
1. शिक्षण में योगदान
नवीनतम शिक्षण पद्धतियों (ब्लेंडेड लर्निंग, प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग) का प्रयोग।
विद्यार्थियों में आलोचनात्मक सोच और नवाचार की प्रवृत्ति जगाना।
शिक्षा को रोजगारपरक और जीवनोपयोगी बनाना।
2. मार्गदर्शन में योगदान
करियर परामर्श और व्यक्तित्व विकास।
विद्यार्थियों को जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए मानसिक दृढ़ता प्रदान करना।
परामर्शदाता की भूमिका निभाना, ताकि विद्यार्थी नशा, अपराध और भटकाव से बच सकें।
3. राष्ट्र निर्माण में योगदान
विद्यार्थियों में लोकतांत्रिक आदर्शों, संविधान के प्रति निष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास।
समानता, समरसता और भाईचारे पर आधारित समाज निर्माण।
विज्ञान, तकनीक, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में नये नेतृत्वकर्ताओं को तैयार करना।
शिक्षक के समक्ष चुनौतियाँ:
1. शिक्षा का बाजारीकरण और निजीकरण।
2. तकनीकी साधनों पर अत्यधिक निर्भरता।
3. विद्यार्थियों में घटते नैतिक मूल्य और अनुशासन।
4. सामाजिक असमानता और जातिगत भेदभाव।
5. शिक्षकों का कार्यभार और संसाधनों की कमी।
इन चुनौतियों के बावजूद शिक्षक अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी से समाज और राष्ट्र की सेवा कर रहा है।
भविष्य निर्माता शिक्षक:
आज भविष्य निर्माता शिक्षक की परिभाषा केवल पढ़ाने वाले तक सीमित नहीं, बल्कि इस प्रकार है:
वह शिक्षक, जो शिक्षा को जीवन और समाज से जोड़ता है।
वह शिक्षक, जो विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ-साथ विवेक, मूल्य और चरित्र भी प्रदान करता है।
वह शिक्षक, जो राष्ट्र और समाज को दिशा देने वाले नेतृत्वकर्ताओं का निर्माण करता है।
शिक्षक का कार्य केवल ज्ञान का प्रसार करना नहीं है, बल्कि जीवन के प्रत्येक आयाम को दिशा देना और समाज को प्रगतिशील मार्ग पर अग्रसर करना है। बदलते युग में जब तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और बाजारीकरण ने शिक्षा की परिभाषा बदल दी है, तब शिक्षक की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। आज वह केवल कक्षा का अध्यापक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत और राष्ट्र निर्माता है, जो विद्यार्थियों को सही सोच, विवेक और मूल्य प्रदान करता है। भविष्य निर्माता शिक्षक विद्यार्थियों को केवल रोजगारपरक शिक्षा ही नहीं देता, बल्कि उनमें नेतृत्व क्षमता, सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदनाएँ भी विकसित करता है। वह शिक्षा को पुस्तकीय ज्ञान से आगे बढ़ाकर जीवनोपयोगी और राष्ट्रोपयोगी बनाता है। लोकतांत्रिक भारत में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वही विद्यार्थियों के माध्यम से समाज में समानता, भाईचारा, सहिष्णुता और समरसता के आदर्श स्थापित करता है।
आज जब युवाओं में मूल्य संकट, भटकाव और प्रतिस्पर्धात्मक दबाव बढ़ रहे हैं, तब शिक्षक ही वह शक्ति है जो उन्हें मानसिक संतुलन, नैतिक दृढ़ता और जीवन की स्पष्ट दिशा दे सकता है। यही कारण है कि शिक्षक को राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहा गया है। शिक्षक केवल वर्तमान को नहीं, बल्कि आने वाले भविष्य को भी गढ़ता है। उसकी भूमिका पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि वह विद्यार्थियों को समाज का जिम्मेदार नागरिक और राष्ट्र का कर्णधार बनाने वाला होता है। बदलते युग में उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं, परंतु यही बढ़ती जिम्मेदारियाँ शिक्षक को और भी महान बनाती हैं। आज आवश्यकता है ऐसे भविष्य निर्माता शिक्षक की, जो शिक्षण, मार्गदर्शन और राष्ट्र निर्माण की नई परिभाषा प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को ज्ञानवान, संवेदनशील और राष्ट्रभक्त नागरिक बनाए।
अतः कहा जा सकता है कि बदलते युग में शिक्षक की भूमिका केवल पाठ पढ़ाने तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन गढ़ने और राष्ट्र निर्माण तक विस्तृत हो चुकी है। आज का शिक्षक ज्ञान, मार्गदर्शन और राष्ट्रप्रेम का संगम बनकर आने वाली पीढ़ियों को न केवल उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाता है, बल्कि भारत को एक विकसित, नैतिक और समरस राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में भी अपनी केंद्रीय भूमिका निभाता है।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा