मदांध शत्रु ही दिखा देता है अपने विनाश का मार्ग: डॉ दीपिका उपाध्याय
डीके श्रीवास्तव
आगरा। 'भगवान शिव के भक्तों को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। भगवान शिव अपने प्रिय भक्तों के हृदय में व्याप्त अभिमान को चूर चूर कर देते हैं, भले ही वह प्रथम दृष्टि में भक्तों के लिए कष्टकारी हो।'
यह प्रवचन श्री शिव महापुराण कथा सुनाते हुए कथा वाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने कहे। नगला डीम, आगरा में चल रही श्री शिव महापुराण कथा का आज सातवां दिन था। आजकल नगला डीम में शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है।
कथावाचक डा. दीपिका उपाध्याय ने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि त्रिपुर दहन के बाद जब इंद्र मदांध हो गए थे तो भगवान शिव ने उनकी परीक्षा ली। भगवान शिव देवराज इंद्र के अभिमान के कारण देवराज इंद्र से कुपित हुए थे। देव गुरु बृहस्पति ने भगवान शिव से क्रोधाग्नि को समुद्र में फेंकने का अनुरोध किया जिससे जलंधर नामक दैत्य की उत्पत्ति हुई। कालनेमि की पुत्री वृंदा से उसका विवाह हुआ।
जलंधर ने भगवान श्री हरि को अपने युद्ध कौशल से प्रभावित कर उन्हें अपने राज्य में माता लक्ष्मी सहित रख लिया। किंतु जब माता पार्वती की ओर जलंधर ने कुदृष्टि डाली तो भगवान शिव बहुत क्रुद्ध हो गए। वृंदा के सतीत्व के कारण वे जालंधर को मार ना सके।
ऐसे में श्री हरि ने जलंधर की ही माया का प्रयोग कर वृंदा का सतीत्व भंग किया और इस प्रकार भगवान शिव ने जालंधर का वध किया।
अंधकासुर की उत्पत्ति भगवान शिव के बंद नेत्रों तथा माता पार्वती के पसीने से हुई। उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके राज्य प्राप्त किया और देवताओं पर अत्याचार किया। भगवान शिव की अनुपस्थिति में माता गौरी के साथ देवों की शक्तियों ने अंधकासुर की सेना को मार भगाया। पाशुपत व्रत पूरा कर भगवान शिव ने अंधकासुर को दंडित किया और उसकी आराधना से प्रसन्न होकर उसे गाणपत्य प्रदान किया।
इस अवसर पर पीतम सिंह, होतीलाल, राजेश, वीरेंद्र, मुरारीलाल आदि उपस्थित रहे।