
खुश रहना एक कला है या यह आदतों का परिणाम? यह सवाल हर उम्र के व्यक्ति को कभी न कभी परेशान करता है। हम सभी खुशी चाहते हैं, लेकिन बहुत लोग यह समझ नहीं पाते कि खुशी मिलती नहीं है, बल्कि सीखी जाती है। मनोविज्ञान बताता है कि खुशी का 40% हिस्सा हमारी दैनिक आदतों, सोच और व्यवहार से बनता है। यानी खुश रहना एक साधी जाने वाली कला भी है और निखारी जाने वाली आदत भी। मनोविज्ञान में खुशी को तीन हिस्सों में समझा जा सकता है:
(I) भावनात्मक अनुभव:
यह वो क्षण होते हैं जब हम अच्छा महसूस करते हैं—संतोष, आनंद, प्रेम, शांति। यह छोटी-छोटी बातों से आता है—मुस्कान, प्रशंसा, प्रकृति, मदद करना।
(II) अर्थपूर्ण जीवन:
जब व्यक्ति महसूस करता है कि उसका जीवन किसी उद्देश्य से जुड़ा है। व्यक्तिगत मूल्य, रिश्ते और योगदान इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं।
(III) संतोष और स्वीकृति:
व्यक्ति अपने जीवन को समग्र तौर पर कैसा महसूस करता है। यह तुलना नहीं, बल्कि तुलना से मुक्त होने की क्षमता से बनता है।
वैज्ञानिक के अध्ययन बताते हैं कि खुशी में 50% हिस्सा जीने से आता है, 10% परिस्थितियों से और 40% आदतों से। ब्रेन इमेजिंग अध्ययन बताते हैं कि माइंडफुलनेस और मेडिटेशन से खुशी वाले न्यूरोनल पाथवे मजबूत करते हैं।अध्ययनों ने पाया कि खुश लोग न केवल ज़्यादा जीते हैं बल्कि बेहतर फैसले भी लेते हैं। खुश रहना एक कला और आदत है क्योंकि इसके लिए कुछ मानसिक कौशल सीखने पड़ते हैं और रोज़मर्रा के छोटे छोटे व्यवहारों का संग्रह करना पड़ता है:
ध्यान केंद्रित करने की कला
दिमाग नकारात्मक पर ज़्यादा टिकता है परन्तु खुश रहने के लिए व्यक्ति को सीखना पड़ता है कि वह किस पर फोकस करे।
कृतज्ञता की कला
मनोवैज्ञानिक शोध बताते हैं कि आभार लिखना 21 दिनों में मूड को बदल देता है।आभार लिखना एक सीखी हुई कला है।
रिश्तों को निभाने की कला
संवाद, समझ, क्षमा—ये सब सीखने पड़ते हैं, जो लोग रिश्तों में निपुण होते हैं, वे अधिक खुश रहते हैं।
अपूर्णताओं से जीने की कला
जीवन में सब कुछ परफेक्ट नहीं होता, कमी को स्वीकार करना भी एक कला है।
सुबह की छोटी आदतें
2 मिनट गहरी सांस, 1 सकारात्मक वाक्य, 5 चीज़ों की आभार सूची यह आदतें न्यूरोलॉजिकल बदलाव लाती हैं।
सोच पैटर्न की आदतें
समस्या में उलझने की बजाय समाधान पर ध्यान, खुद की तुलना कम करना, दिन में छोटे ब्रेक लेना यह आदतें मानसिक ऊर्जा को सुरक्षित रखती हैं।
शारीरिक आदतें
20 मिनट वॉक, हल्का स्ट्रेच, नींद की स्वच्छता क्योंकि शरीर की स्थिति मन पर सीधा असर डालती है।खुश रहने का अर्थ दुख से दूर रहना नहीं, बल्कि जीवन को बेहतर ढंग से जीने की मानसिक क्षमता विकसित करना है। आज के दौर में खुश रहना अपने आप मे एक चुनौती है, उम्र कोई भी हो, कोई भी रिश्ता हो, कोई भी प्रोफेसन् हो सभी को खुश होने के लिए अवसर चाहिए जबकि खुशी प्रकृति का वो अनमोल वरदान है जो हर क्षण अनुभव किया जा सकता है, शर्त ये है की आपका व्यवहार समयानुकूल और सकारात्मक हो, अर्थात अगर मनुष्य को प्रत्येक क्षण और पुरे जीवन खुश रहना है तो उसको अपने व्यवहार पर विचार करना होगा साथ ही नियंत्रण भी रखना होगा क्योंकि एक सोच मे इतनी ताकत होती है कि वो वातावरण को अनुकूलता प्रदान कर सकती है, अतः एक अच्छी सोच अच्छे शब्दों का निर्माण करते हुए सकारात्मक क्रिया के साथ सरल वातावरण का निर्माण कर खुशी प्रदान कर सकती है।
खुश रहने का अर्थ दुख से दूर रहना नहीं, बल्कि जीवन को बेहतर ढंग से जीने की मानसिक क्षमता विकसित करना है।



